सावधान! रंग गोरा करने के नाम पर बेचीं जा रही हैं “पाकिस्तानी क्रीम्स”, बन सकते हैं रोगी 10 Aug 2020

10 Aug 2020

 सावधान! रंग गोरा करने के नाम पर बेचीं जा रही हैं “पाकिस्तानी क्रीम्स”, बन सकते हैं रोगी


रंग गोरा करना आज की युवा पीढ़ी की आम समस्या बन चुका है. हर कोई खुद को बेहतरीन दिखाने की इस दौड़ में भाग रहा है. इसके लिए लोग महंगी से महंगी क्रीम्स और ब्यूटी ट्रीटमेंट करवाने से भी कन्नी नहीं कतराते. लेकिन क्या आप जानते हैं कि इन सभी ब्यूटी प्रोडक्ट्स में कईं प्रकार के हानिकारक एसिड्स का इस्तेमाल किया जाता है. जोकि कुछ समय तक त्वचा की रंगत में निखार आवश्य ले आते हैं मगर आगे चल कर हमे त्वचा संबंधित कईं तरह के रोग घेर लेते हैं.


दुनिया के 70 फीसदी लोग क्रीम्स टीवी पर आने वाले एक्टर्स के विज्ञापन को देख कर खरीदते हैं. इन सभी विज्ञापनों में झट से गोरा रंग करने वाला असर दिखाया जाता है जोकि लोगों के साथ किया जाने वाला दिमागी खिलवाड़ है.  रंग गोरा करने वाली अधिकतर क्रीम पाकिस्तान से मंगवाई जा रही है जोकि आपको गोरा करने की बजाय हमेशा के लिए रोगी बना सकती हैं.


हमारे भारत ही नहीं बल्कि देश और दुनियाभर में रंग गोरा करने के नाम पर ज़हर बेचा जा रहा है. रंगत निखारने के नाम पर लोग सरेआम मौत की सामग्री बेच रहे हैं. बता दें कि अधिकतर फेस क्रीम्स में पारा यानी मरकरी का इस्तेमाल किया जा रहा है जोकि सरकार द्वारा प्रतिबंधित है लेकिन फिर भी हर जगह इन क्रीम्स को आसानी से बेचा जा रहा है.

शोध में आये यह परिणाम सामने

हाल ही में फेस क्रीम्स पर 12 देशों के मर्क्युरी प्रदूषण पर काम करनेवाली संस्था ग्लोबल अलायंस ऑफ एनजीओ फॉर जीरी मर्कियुरी वर्किंग ग्रुप ने रिसर्च की. इस शोध में उन्हें स्टडी के लिए 158 स्कीन लाइटिंग क्रीम के सैंपल लिए गए, जिनमें से 95 सैंपल में मर्क्युरी की मात्रा 40 पीपीएम से 113000 पीपीएम के तक थी. इन सैम्पल में से भारत में कलेक्ट की गई स्कीन लाइटनिंग क्रीम में मर्क्युरी अलार्मिंग लेवल 48 पीपीएम से 113000 पीपीएम तक पाया गया जो कि सरकार द्वारा तय की गई लिमिट यानि 1 पीपीएम (प्रति मिलियन) से कई ज्यादा है.

पूरे एशिया में बनते हैं ये क्रीम्स

शोध के दौरान टीम ने भारत से भी स्किन लाइटनिंग क्रीम्स के सैम्पल मंगवाए थे. इनके सैम्पल ऑनलाईन पोर्टल और दुकान से डायरेक्ट कलेक्ट किए गए थे, जिनमें से अमेजन से क्रीम के 9 सैंपल, फ्लिपकार्ट से 2 सैंपल और गफ्फार मार्केट से 5 सैंपल लिए गए. शोध से पता चला कि अधिकतर स्किन लाइटनिंग प्रोडक्ट्स एशिया में ही बनाये जा रहे हैं.

इस रिपोर्ट के अनुसार टीम ने पाकिस्तान में 62 फीसदी, थायलैंड में 19 फीसदी और चीन में 13 फीसदी आंकड़ा पाया. बता दें कि इन सभी 12 देशों में 158 सैंपल टेस्ट किए गए थे जिनमें से 60 फीसदी प्रोजक्ट में पारा की तय की गयी मात्र से मानक 1 पीपीएम से कहीं ज्यादा पाई गई. वहीँ हमारे भारत से 16 स्कीन लाइटनिंग प्रोडक्ट को टेस्ट किया गया है जिसके आंकड़े निम्नलिखित पाए गये-

– अमेजन से 10 सैंपल खरीदे गए थे जिनमें पारे की मात्रा 46.95 पीपीएम से 113833.33 पीपीएम थी.
– गफ्फार मार्केट से 4 सैंपल खरीदे गए जिनमें पारे की मात्रा 48.17पीपीएम से 110000 पीपीएम थी.
– फ्लिपकार्ट से खरीए गए 2 सैंपल में मरकरी की मात्रा 65 पीपीएम से 10000 पीपीएम थी.
– मरकरी की मात्रा 48 पीपीएम से 113000 पीपीएम के बीच होना तय मानक 1 पीपीएम से कहीं ज्यादा थी.

मर्क्युरी से हो सकता है स्किन कैंसर

मरकरी एक तरह का न्यूरोटॉक्सिन है जो कि हमारी किडनी, लिवर और गर्भ में पल रहे बच्चे को नुकसान पहुंचाता है. रिसर्च में पाया गया कि पारा यानी मरकरी स्किन पर लगाने से स्किन कैंसर की मुख्य वजह भी बन सकता है.

Source -

https://rajivdixitji.com/mercurial-skin-lightening-cream-effects-on-skin/

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